सुदर्शन जी उर्फ़ भगत जी ने गीता ज्ञान ब्लॉग जब से शुरू किया उनके जीवन में बहुत सारे बदलाव आयें है | हर बदलाव अच्छा हो ये जरुरी नहीं, लेकिन उनके साथ उनके साथ इस मामले में लगभग सारे बदलाव अच्छे ही हुए है | वैसे तो उन्हें बचपन से ही गीता में गहरी दिलचस्पी थी लेकिन जब से ब्लॉग पर लिखना शुरू किया तब से असल जिंदगी में इसके प्रयोग को लेकर उन्हें बहुत कुछ सिखने को मिला है |
लेकिन जैसे एक सर्जन जब बीमार होता हैं तो अपना ऑपरेशन खुद नहीं कर पता, नाई अपने बाल खुद नहीं काट पता और इस से भी सटीक एक और कहावत, की घर की मुर्गी दाल बराबर होती है | लगभग यही हाल भगत जी के घर का है, उनकी पत्नी के अलावा उनके घर में दो बेटे है जो अच्छे खासे पढ़े लिखे, समझदार और अच्छी नौकरियों पर है | लेकिन जब बात पिता के अनुभव सुनने और उनकी सलहा मानने पर आती है तब इन्ही बेटो को अपने पिता की सोच पुराने ज़माने की लगने लगती है |
एक समय ऐसा आया जब भगत जी को लगने लगा की उनके बच्चो को ना सिर्फ गीता के ज्ञान जानने बल्कि अपनी ज़िंदगी में उतारने की भी सख्त जरुआत है |
कोरोना काल की स्थिति
बात साल 2020 की है, वही साक जब कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अपने घातक पंजो में जकड लिया पूरी दुनिया इसके डंक से केहरा रही थी | क्या आमिर क्या गरीब हर देश हर व्यक्ति इसके खौफ तले जी रहा था |
ऐसा भयानक मंजर शायद हर किसी ने पहली बार देखा था | जो बीमार थे उन्हें बीमारी ने तबाह किया, जो बीमारी से बच भी गए उनके रोजगार खतरे में आगए | लोगो को घरो में सिमट कर काम करना पड़ा और लगभग हर इंसान का मानसिक स्वास्थ्य किसी ना किसी हद तक प्रभावित हुआ | यही हाल शास्त्री जी के घर का भी था, उनकी पत्नी हर वक़्त परेशान रहती की कही उनके परिवार में कही कोई बीमारी ना हो जाये | बेचारी हमेशा एक खोफ के साये में रहती, भगत जी के लाख समझाने के बाद भी उनका डर ना ख़तम होता, ना कही जाता | हर वक्त अपने दोनों बच्चो की चिंता में रहती, जो दूर दूसरे शहरों में Lockdown के कारण फसे हुए थे |
किसी तरह कोशिश करके भगत जी का छोटा बेटा अभिनव अपने शहर वापिस आ गया उसके ऑफिस ने घर से काम करने की सुविधा दे राखी थी | इस बात से भगत जी पत्नी को थोड़ा सुकून तो मिला, की चलो एक बेटा तो आँखों के सामने है उसके आराम, उसके खान पान का जिम्मा उसकी माँ ने ऐसे उठाया मानो बेटा ना हो कोई वीआईपी घर पे ठेरा हो |
इधर भगत जी का इनबॉक्स लोगो के सवालो, दर्द भरी कहानियो से भरा रहने लगा | कोई किसी अपने के जाने के चले जाने के गम में खुद को और अपने परिवार को सँभालने की सलाह मांगता, तो कोई दिमाग की शांति के उपाए तलाशता हुआ उनके इनबॉक्स में दस्तक देता | कुल मिला कर हर तरफ बस एक अजीब उदासी का माहौल था | भगत जी नोटिस किया उनका बेटा अभिनव कुछ बदला सा लग रहा है, माँ के लाड का जवाब कभी झला कर तो कभी चिड़चिड़ स्वर में देता |
भगत जी अपनी पत्नी को समझाते की बेटा अब बड़ा हो गया है | उस से ५ साल के बचे के जैसे व्यव्हार मत करो, लेकिन माँ का मन कहा मानता है | सारा सारा दिन बेटा अपने कमरे में बंद रहता, दिन भर उसके कमरे से कभी किसी मीटिंग तो कभी किसी मीटिंग की आवाज आती रहती, खाना तक खाने वो बाहर नहीं निकलता माँ से कह कर अपने कमरे में मंगवा लेता |
इधर पिछले कुछ दिनों से उसके फ़ोन पर चिल्लाने कीआवाजें बाहर तक आने लगी थी, शुरू में भगत जी ने सोचा काम का दबाव होगा वैसे ही सबका समय आजकल ख़राब ही चल रहा है जिसका असर लोगो के व्यवहार में दिख रहा है | लेकिन हर बीतते दिन के साथ उनके बेटे का व्यव्हार और चिड़चिड़ा होने लगा, गुस्सा जैसे हमेशा उसकी नाक पर रहता कुछ पूछो तो वो चिल्लाने लगता | भगत जी ने कई बार बेटे से बात करने की उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वो भी बेकार हो गयी |
एक दिन तो हद ही हो गयी, पहले तो बेटे के कमरे से फ़ोन पर चिल्लाने की और फिर कमरे की चीजे पटकने की आवाजें आने लगी | भगत जी और उनकी पत्नी ने दरवाज़ा खटखटाया लेकिन बेटे ने उन्हें चिल्ला कर उसके मामलो से दूर रहने को कहा, बेचारे करते भी तो क्या | बड़े बेटे से फ़ोन पर ये परेशानी बांटी तो उसने भी कहा की आज कल हर कोई परेशान है, नौकरियां खतरे में है, खुद को बेहतर साबित करने का ऐसा दबाव है की लोग इसे संभाल नहीं पा रहे है |
उसे थोड़ा समय दीजिये वो खुद ही ठीक हो जायेगा |
एक रत जब भगत जी पानी पीने रसोई तक आये, तो उन्होंने अभिनव के कमरे की लाइट जली हुई देखि | यू ही झांक कर देखा तो उनका लाडला बेटा घुटनो में सर दिए रो रहा है, उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ और वो तुरंत अंदर चले गए | बेटे के सर पर हाथ फेर के पूछा की क्या हुआ? तू ठीक तो है? अपने पिता के प्यार से छूने से अभिनव को जाने क्या महसूस हुआ वो फुट फुट कर रो पड़ा |
भगत जी ने उसे सीने से लगा लिया, बेटे का ये हाल देख कर उनका कलेजा मुँह को आगया | थोड़ी देर में सामान्य हो कर अभिनव बोला मेरे गुस्से ने सब ख़राब कर दिया पापा, पता नई मुझे क्या हो गया है | जब भी मेरे नीचे काम करने वालो से छोटी सी भी गलती हो जाती है मुझसे बर्दाश्त नहीं होता, मुझे गुस्से के मारे होश ही नहीं रहता और में भूल जाता हूँ की हम सब इंसान है, सब बुरे दौर से गुजर रहे है | ऐसे में अगर किसी ने जाने अनजाने गलतियां कर भी दी तो उसे नजरअंदाज करदेना चाहिए |
आप ही बताय पापा में क्या करू ?
श्री मदभागवत गीता का श्लोक
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।
यह गीता के 2 अध्याय का 63 वां श्लोक है, जिसका अर्थ है क्रोध से मनुष्य की बुद्धि मारी जाती है मतलब वो मूड हो जाती है, इस से यादाश्त नष्ट हो जाती है, यादाश्त नष्ट हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही नाश कर बैठता है|
इस श्लोक में भगवन श्री कृष्ण अर्जुन को ये समझा रहे है की कोई भी युद्ध सिर्फ ताकत से नहीं जीता जा सकता | आपको अपनी इन्द्रियों को भी नियंत्रण में रखना सीखना होगा, वरना आपको हराने के लिए बहारी दुश्मनो की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी, आप खुद के ही दुश्मन बन जायेगे | क्रोध यानि गुस्सा इंसान का एक ऐसा ही एक दुश्मन है क्युंकी गुस्सा आते ही हम सबसे पहले अच्छे बुरे का विवेक खो देते है, सामने कौन है?, उसके सम्मान की प्रवाह किये बिना बाते बोलने लग जाते है, या कुछ ऐसा कदम उठा लेते है जिस से हमे पछतावे के सिवाए कुछ और नहीं मिलता |
क्रोध बड़े से बड़े वीरो के बल को भी एक पल में समाप्त कर देता है, बड़े बड़े ज्ञानियों के ज्ञान को ख़तम कर देता है, और जीवन भर के कमाए हुए पुनियो और सम्मान को एक पल में चकना चूर कर देता है | इसीलिए सबसे पहले अपने क्रोध को जितना सीखो, तभी जिंदगी की बाकि लड़ाइयाँ जीत पयोगे |
लेकिन में ये कैसे करू पापा? अभिनव ने पूछा
बिलकुल वैसे जैसे अपने बाकि के काम करते हो, अपने दिमाग को यह संकेत देकर की चाहे कुछ भी हो जाये, कैसी भी सिचुएशन हो अपना आपा नहीं खोना है | यह गीता के २ अध्याय का ६३ वां श्लोक है, जिसका अर्थ है क्रोध से मनुष्य की बुद्धि मारी जाती है मतलब वो मूड हो जाती है, इस से यादाश्त नष्ट हो जाती है, यादाश्त नष्ट हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही नाश कर बैठता है |
इस श्लोक में भगवन श्री कृष्ण अर्जुन को ये समझा रहे है की कोई भी युद्ध सिर्फ ताकत से नहीं जीता जा सकता | आपको अपनी इन्द्रियों को भी नियंत्रण में रखना सीखना होगा, वरना आपको हराने के लिए बहारी दुश्मनो की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी, आप खुद के ही दुश्मन बन जायेगे | क्रोध यानि गुस्सा इंसान का एक ऐसा ही एक दुश्मन है क्युंकी गुस्सा आते ही हम सबसे पहले अच्छे बुरे का विवेक खो देते है, सामने कौन है?, उसके सम्मान की प्रवाह किये बिना बाते बोलने लग जाते है, या कुछ ऐसा कदम उठा लेते है जिस से हमे पछतावे के सिवाए कुछ और नहीं मिलता |
क्रोध बड़े से बड़े वीरो के बल को भी एक पल में समाप्त कर देता है, बड़े बड़े ज्ञानियों के ज्ञान को ख़तम कर देता है, और जीवन भर के कमाए हुए पुनियो और सम्मान को एक पल में चकना चूर कर देता है | इसीलिए सबसे पहले अपने क्रोध को जितना सीखो, तभी जिंदगी की बाकि लड़ाइयाँ जीत पयोगे |
लेकिन में ये कैसे करू पापा? अभिनव ने पूछा
बिलकुल वैसे जैसे अपने बाकि के काम करते हो, अपने दिमाग को यह संकेत देकर की चाहे कुछ भी हो जाये, कैसी भी सिचुएशन हो अपना आपा नहीं खोना है | दुसरो की जगह खुद को रखकर देखने की आदत बनानी है और अगर किसी से ऐसा हो भी जाये जो गलत हो, हमारा नुक्सान हुआ हो, तब भी पूरी कोशिश करनी है की गुस्से की बजाये शांति और धेर्ये से अगले को इसका एहसास करवया जाये |
पिता की प्यार भरी छुयान और गीता ज्ञान की ठंडी फुहार से अभिनव का मन एक दम शांत हो गया था | वो जनता था की एक दिन में वो खुद को नहीं बदल पायेगा | लेकिन गीता के श्लोक और उसके अर्थ के अनुसार अगर हर दिन जीने की कोशिश करे तो शायद एक दिन खुद को पूरी तरह बदलने और एक बेहतर इंसान बनने में कामयाब हो जायेगा |
बदले नजरिये की पहली शुरआत में अभिनव ने अपनी माँ से माफ़ी मांगी, जिसका दिल उसने जाने कितनी बार दुखाया था और माँ से अपने मन को पूरी तरह कंट्रोल करने का वादा किया ताकि वो किसी और का दिल ना दुखाये | भगत जी ने एक बार फिर भगवन श्री कृष्ण और भगवत गीता को मन ही मन प्रणाम किया और हर बार उन्हें सही रहा दिखाने का आभार जताया |