Karam Hai Mahan (कर्म हैं महान) | Episode 2

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि

एक छोटे से शहर में रहते हैं भगत जी, जो न तो पंडिताई करते हैं और ना किसी पंडित के घर पैदा हुए हैं | लेकिन फिर भी पूरा शहर इंटरनेट की बदौलत जाने कहा कहा के लोग उन्हें भगत जी के नाम से जानते हैं उनका असल नाम तो सुदर्शन है |

एक सरकारी ऑफिस में जिंदगी भर काम करने बदले ठीक ठाक पेंशन लेकर रिटायर हुए हैं, घर में साधारहण सी पत्नी है, दो बेटे हैं जो बड़े शहरों में अच्छी जॉब्स पर हैं | अब सवाल ये उठता हैं की दुनिया, यहाँ तक की उनकी पत्नी भी उन्हें भगत जी को कहती हैं? इसके पीछे एक कहानी हैं | कहानी जो की भगत जी के जीवन में घटी सच्ची घटना भी हैं|

सुदर्शन जी से भगत जी बनने का सफर

बात उस दौर की है, जब हमारे देश में कंप्यूटर रेवोलुशन शुरू ही हुआ था | तमाम बड़े सरकारी ऑफिसेस में कंप्यूटर लगाए जा रहे थे और कर्मचारियों को उन्हें चलना सिखाने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही थी | सुदर्शन जी हमेशा से पढ़ने और नयी चीजे सीखने के बड़े शौकीन थे, उन्होंने न सिर्फ लिटरेचर बल्कि धार्मिक किताबे भी बड़ी रूचि से पढ़ी थी बल्कि उनकी पत्नी के शब्दों में कहें तो रामायण और गीता तो वो घोट कर पी गए थे |

अक्सर घर और ऑफिस की महफ़िलो में बहुत सूंदर शब्दों में रामचरित्रमानस की चौपाइयाँ और गीता के श्लोको को बड़ी साधारण और आसान शब्दों में समझाते थे | अब जब कंप्यूटर सिखने की बरी आयी तो इसमें भी उन्होंने बेहद रूचि से भाग लिया जबकि उनके साथ के बाकि लोग जाने क्यू बड़े बेमान से कतराते हुए ट्रेनिंग में हिसा ले रहे थे |

उन्हें ट्रेनिंग देने वाली टीम कही बहार से आयी थी, 4 जवान लड़के जो शायद अभी अभी पढ़ाई पूरी करके निकले थे, इन्हे सीखा रहे थे | इस टीम में एक लड़का थे जो बहुत शांत स्वभाव का था, बड़े धर्य से इन लोगो को सिखाता था और कभी भी बेवकूफी भरे सवालो पर गुस्सा नहीं होता था |

इस लड़के का नाम प्रदीप था, सुदर्शन जी को प्रदीप बहुत पसंद था | इधर कुछ दिनों से सुदर्शन जी देख रहे थे की प्रदीप कुछ शांत सा रहने लगा था | उसके चेहरे पर हमेशा रहने वाली मुस्कान जैसे कम सी हो गयी थी |

अक्सर कही खोया सा रहता और एक अजीब सी परेशानी (Sadness) उसकी आँखों में बनी रहती | अब सुदर्शन जी तज़ुर्बेदार आदमी थे, जानते थे की अगर इस उम्र में डिप्रेशन ने पकड़ लिया तो जिंदगी ख़राब कर देगा |

इसीलिए उन्होंने प्रदीप से बात करने की सोची और एक दिन उसे डिनर पर घर बुलाया | प्रदीप आया और खाना खाने के बाद भगत जी उसे साथ लेकर सैर पर निकल गए | फिर बातो बातो में उस से परेशानी का कारण पूछा जिसे पहले तो वो टालता रहा लेकिन फिर उसने अपनी परेशानी का कारण बता ही दिया ||

दरअसल पिछले पांच सालो से प्रदीप किसे बड़ी परीक्षा (Exam) की तयारी कर रहा था और लगातार मेहनत के बाद भी तीसरी बार उसे फेलियर ही मिली थी | जिसने उसकी हिमत पुरे तरीके से तोड़ दी थी | उसे लगता था की उसकी जिंदगी के पांच साल ऐसे ही बर्बाद हो गए और अब उसका कोई फ्यूचर नहीं होगा |

इतनी मेहनत के बाद मिले फेलियर ने उसे चौथे और आखरी मौके के लिय भी मायूस कर दिया था वो अब आगे परीक्षा की तयारी नहीं करना चाह रहा था और कही न कही अपने फेलियर के लिए खुद को ही कुसूरवार मान रहा था की शायद उसकी मेहनत में ही कही कमी रह गयी थी |

ये सब सुनके सुदर्शन जी ने प्रदीप को भगवत गीता का यह श्लोक सुनाया। ……

गीता का श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥

जानते हो प्रदीप इसका मतलब क्या हैं? यह श्लोक भगवत गीता के दूसरे पाठ का 47th श्लोक हैं | जब अर्जुन रणभूमि पर अपने सगे सम्बन्धी, अपने गुरु, भाई और दोस्तों को देख कर युद्ध छोड़ देना चाहते हैं तब भगवन उसे गीता का उपदेश देते हैं और गीता का ये श्लोक तो संपूर्ण गीता का सार जैसा ही हैं |

इसका अर्थ अगर समझ लें तो जीवन की सारी परेशानी हल हो जाए | प्रदीप ने पूछा की आखिर क्या है इस श्लोक का अर्थ, और उसमे ऐसा क्या हैं जो आप उसे हर परेशानी का सलूशन बता रहे हैं?

सुदर्शन जी बोले इसका अर्थ है के हे अर्जुन तेरा अधिकार कर्म करने में है उसके फल मे नहीं, तू कर्म के फल के प्रति असतय ना हो या कर्म ना करने के प्रति प्रेरित ना हो |

साधारण शब्दों में कही तो हम में से हर कोई कुछ भी करने से पहले उस काम के फल के बारे में सोचता हैं जैसे बच्चे पढाई शुरू करने से पहले प्रथम आने की दुआ करते हैं, बिज़नेस मैन दिन की शुरुआत में ही शाम तक मटेरियल पूरी तरीके से इस्तेमाल हो जाने की दुआ करता हैं, ग्रहणी सब्जी काटने से पहले ही सोचती हैं की आज का खाना खा कर तो उसका परिवार उसकी तारीफ करेगा |

हर कोई अपने हर काम से अच्छे से अच्छे फल की उम्मीद करता हैं | जबकि हमारे हाथ में सिर्फ और सिर्फ अपना काम करना हैं, उसका फल क्या मिलेगा, कैसा मिलेगा, कैसे मिलेगा इस पर ना तो हमारा कोई बस है और ना ही कोई हक़ |

ये सुन कर प्रदीप बोला अगर हम फल की इच्छा ही नहीं रखेंगे तो उस काम के लिए प्रेरणा क्या रह जाएगी? ऐसे तो हम कोई भी काम बस टाइम पास के लिए ही करेंगे | सुदर्शन जी बोले, नहीं | इसका ये मतलब नहीं की हम अपने काम में दिलचस्पी ना ले या अपनी कोशिश में कोई कमी करे, इसका मतलब ये हैं की हम ये समझ ले हमारे बस में सिर्फ हमारा काम हैं |

उदहारण के लिए

एक बच्चे का काम, पुरे साल भर अच्छे से पढाई करना हैं लेकिन परीक्षा का फल और भी कारको पर निर्भर (Depend) करता हैं जैसे कई बार पेपर चेक करने वाले के मूड (mood) पर भी | ऐसे में अगर उस बच्चे के नंबर अपेक्षा से काम आ जाते हैं तो उसे ना तो अपनी काबिलियत पर शक करना है और ना ही आगे परीक्षा की त्यारी करने में कोई कटौती करनी हैं | हमे हर हाल में अपना बेस्ट (best) देना है, उसके बाद क्या होता हैं? ये ईश्वर पर छोड़ देना हैं |

किसान जब खेत में बीज बोता हैं, रात रात भर जाग कर फसल को पानी देता हैं तब वो अपना काम कर रहा है लेकिन अगर सूखा पड़ जाये या फसल को कोई बीमारी लग जाये तब किसान को अपने आपको इसकी वजह नहीं समझना चाहिए | क्योंकि ये बात उसके बस में नहीं थी |

जीवन में बहुत कुछ ऐसा हैं जिस पर हमारा कोई वश नहीं हैं लेकिन खुद पर और अपने कर्म पर हमारा पूरा वश है | इसलिए उसमे कमी नहीं रहनी चाहिए, जब हम इस बात को समझ लेंगे तो जीवन की छोटी बड़ी बातो में हौसला नहीं हारेंगे, खुद पर विश्वास रखेंगे और हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए त्यार रहेंगे | सुदर्शन जी बातो ने प्रदीप पर जादू जैसा असर किया उसने मन ही मन एक बार फिर पूरा जोर लगा कर परीक्षा की त्यारी करने का फैसला कर लिया था |

कुछ दिन बाद जब सुदर्शन जी के ऑफिस में कंप्यूटर ट्रेनिंग पूरी हुई और सिखाने वाली टीम को विदा किया जा रहा था तब प्रदीप ने सबको इकठ्ठा किया और कहा हम सबको हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखने के लिए त्यार रहना चाहिए | टीचर कही भी किसी भी रूप में मिल सकते हैं और हो सकता हैं कोई ऐसा टीचर मिल जाये जो जिंदगी के लिए अपना नजरिया ही बदल दें |

मुझे भी यहाँ एक गुरु मिले जिन्हे जीवन का बहुत तजुर्बा हैं और इस अनुभव को बाँटना भी आता हैं | वे गुरु हैं, सुदर्शन जी जिन्हे में आज से भगत जी कह कर पुकारूंगा क्योंकि भगत का अर्थ होता है ज्ञानी, ज्ञान देने वाला | साथ ही गुरुदक्षिणा में मेने उनके लिए एक ब्लॉग त्यार किया हैं जिसका नाम रखा हैं “गीता ज्ञान” | इस ब्लॉग से भगत जी गीता के जरिये लोगो को उनकी परेशानियो में रहा दिखा सकते हैं | इस तरह से सुदर्शन जी का नाम भगत जी पड़ गया और उनका गीता ज्ञान ब्लॉग एक जरिया बन गया जहा लोग अपनी परेशानिया भगत जी को लिख कर गीता के जरिये सलूशन पा सकते थे |

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *