Dharam Yudh (धरम युद्ध) | Episode 6

Dharam Yudh (धरम युद्ध)

अगर देखा जाये तो गीता ज्ञान इतना गहरा है की एक जीवन में इसे पूरी तरह समझ पाना किसी के लिए भी नामुमकिन होगा लेकिन अगर इस महासागर से मोती भी हम चुन पाए, तो समझिये की ये जीवन सफल है | आज के लिए बस इतना ही बाकि कल, इतना लिख कर सुदर्शन जी उर्फ़ भगत जी ने अपनी गीता ज्ञान की पोस्ट को ख़तम किया |

पोस्ट तो ख़तम करदी लेकिन भगत जी का मन अभी भी ब्लॉग पर आये एक सवाल पर ही टिका हुआ है वैसे तो रोज ही उनके पाठक नए सवाल भेजते रहते हैं, जिनका इंतज़ार भी रोज रहता ही है | आज एक नया सवाल है या यु कहे की किसी ने अपनी कहानी भेजी, जिसने भगत जी के मन को उलझा कर रख दिया | ये ईमेल किसी नए पाठक का था जो की इस तरह से था |

उदय की परेशानी की सच

भगत जी नमस्कार, में आपको कोई सवाल ना भेज कर अपने जीवन की अब तक की कहानी भेज रहा हूँ | और आपसे उम्मीद करता हूँ की आप इसे पढ़ कर आगे मुझे अपने जीवन में क्या करना चाहिए, इस बारे में बतायेंगे |

मेरा नाम उदय है में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाओ से हूँ, मेरे पिता एक किसान थे | थे इसलिए लिख रहा हूँ क्युकी वे अब इस दुनिया में नहीं है, मेरे पिता कोई बड़े इंसान तो नहीं थे लेकिन एक बात जो में अपने बचपन के आधार पर कह सकता हूँ वो ये की वे जब तक रहे उन्होंने माँ समेत हम तीनो भाई बहनो को कोई कमी नहीं होने दी | हलाकि उनका साया हमारे सर से बहुत जल्दी उठ गया था, उस वक्त मेरी उम्र शयद १० वर्ष की रही होगी |

मुझ से बड़ी बहन और भाई १२ और १५ साल के रहे होंगे, सबसे छोटा होने की वजह से में अपने पिता का लाडला था, ऐसा मेरी माँ कहती है और कही ना कही में भी इस बात को मेहसुस करता था | तभी तो पिता जी के अचानक चले जाने का सदमा कई साल तक मेरा मन संभल नहीं पाया था | हालाँके हमे एहि बताया गया की हमारे पिता मौत एक दुर्घटना थी |

लेकिन मेने कई बार अपने मामा और माँ की बातो में सुना की उनके सौतेले भाइयो ने जमीन के लालच में उन्हें मरवा दिया था | हमारे पूछने पर हमेशा माँ ने इस बात को टाल दिया बल्कि हमे कसम दी की कभी किसी से इस बारे में जिक्र नहीं करेंगे |

पिता जी मौत के बाद माँ एक दम बदल गयी थी हमेशा डरी सेहमी सी रहती, और लगभग हर दिन जब हम पढ़ने बैठते तो माँ कहती की पढ़ लिख कर जल्दी से काबिल बन जायो की इस गाओ से बाहर जा सको, में नहीं चाहती तुम यहाँ जायदा वक़्त तक रहो | समय बीतता गया हम तीनो को जैसे तैसे माँ पढ़ा रही थी उनकी सख्त हिदायत थी की पढाई के अलावा हमे और किसी बात पर ध्यान नहीं देना है |

अक्सर मेरे सोने के बाद बड़े भाई और बहन कुछ बाते करते, जिनमे से मुझे बस यही समझ आता की एक एक करके हमारी साडी जमीनों पिता के सौतेले भाइयो ने हथयाली है और हमारे पास खेतो के नाम पर कुछ टुकड़े ही बचे है, ये भी की माँ धीरे धीरे अपने गहने बेच कर हमारा पेट भर रही है | इन सब बातो को सुनकर मुझे बहुत दुःख होता लेकिन में किसी से बता नहीं सकता था |

माँ का सख्त आर्डर था और वैसे भी मेरा दुःख सुनने वाला था ही कौन, समय के साथ बड़ा भाई आगे की पढाई करने के लिए शहर चला गया था | इसके लिए भी माँ ने अपने गहने ही बेचे थे, बहन ने आगे पढाई की जगह सिलाई सिखने की इच्छा जताई तो माँ ने उसे पड़ोस के सिलाई सेंटर में दाखिला दिलवा दिया, माँ खुद उसके साथ जाती और उसकी वापिसी के वक़्त तक सेंटर के बाहर इंतज़ार करती फिर दोनों साथ ही वापिस आते |

में बहन को चिढ़ाता इतनी बड़ी होकर भी अकेले आ जा नहीं सकती, में नहीं जनता था की माँ किस डर से उसके साथ जाती थी | में जिसने हर वक़्त माँ से बस यही सुना की किसी तरह इस गाओ से निकल जाना है, खेतो के नाम पर जो चंद टुकड़े बचे थे माँ उनमे बड़ी मेहनत से फसल लगाती | हलाकि उनसे फसल के नाम पर कुछ भी ना निकलता लेकिन माँ उन खेतो को बंजर नहीं छोड़ना चाहती थी |

वो कहती उनके स्वर्गवासी सास ससुर और पति की निशानी है ये खेत, इन्हे जब तक हो सकेगा आबाद रखूंगी, मेरे बाद तुम लोग जो चाहये करना | मेने उन खेतो के प्रति माँ का गहरा लगाव महसूस किया था, जितनी देर वो खेतो में काम करती खुश दिखती, घर लौटते ही उनके चेहरे पर अजीब सा डर और उदासी फेल जाती |

इस दौरान भाई की ठीक ठाक नौकरी लग गयी थी तो उसकी मदद से घर के हालात संभालने लगे थे, मेरी स्कूल की पढाई पूरी हो गयी थी और मामा ने भी बहन के लिए कोई अच्छा रिश्ता देख कर उसकी सगाई करवा दी थी | अब मुझे भी गाओ से बाहर जाकर आगे की पढाई करनी थी | बहन की शादी के बाद माँ को एक दम अकेले ही गाओ में रहना होगा, यह सोच कर मुझे बहुत बुरा लगता था |

भाई के लाख समझाने पर भी माँ हमारे साथ शहर नहीं आयी, उनका कहना था की वो खुश है की हम लोग गाओ से निकल गए, अब वो आराम से रह सकती है | गोवा के घर में पिताजी की यादें है जिन्हे छोड़ कर वे कही नहीं जाएँगी, अब भी लगातार माँ अपने खेतो में काम करती थी, रोज खेतो में जाना उनकी दिनचर्या थी, जैसे मंदिर जा कर शांति मिलती है उन्हें इन खेतो में वोही शांति मिलती थी |

मुझे उस गाओ से निकले कई साल बीत गए है, में अच्छी नौकरी पर हु, मेरे भाई बहनो के अपने परिवार है और माँ अब भी गाओ में है | लेकिन मेरे पिता के सौतेले भाई और उनके बच्चे माँ को परेशान करने लगे है, उन चाँद खेतो के लिए जो हमारे है, जिन पर मेरी माँ इतने साल अपना प्यार लुटाया है, जो उसकी जीने की वजह है | यह सब बाते मुझे गाओ से शहर मिलने आये मेरे एक दोस्त ने बताई है, मेरे भाई का कहना है की माँ कभी नहीं चाहेंगी की हम किसी लड़ाई में पड़े और वो भी नहीं चाहता क्योकिं अब उसकी अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारियाँ है वो उन्हें निभाना चाहता है |

कुछ जमीन के टुकड़ो के लिए उन जंगली लोगो से नहीं लड़ना चाहता है, जिन्होंने पहले भी खेतो के लिए हमारे पिताजी की जान लेली थी |

भगत जी मेरी कहानी यही पर रुकी है, मुझे क्या करना चाहिए?

अपना हक़ और अपनी माँ के सम्मान के लिए लड़ना चाहिए या यह सब नजरअंदाज कर देना चाहिए? इस बारे में गीता ज्ञान क्या कहता है?

मुझे उम्मीद है आप मुझे कुछ अच्छे सलाह जरूर देंगे

उदय के पत्र को अच्छे से पढ़ कर उसकी परिस्थति को समझ कर भगत जी ने उसे जवाब लिखा |

प्रिय उदय,

तुम्हारी जीवन कथा पढ़ी, तुम्हारे संघर्षो ने मुझे प्रभावित किया अब जो सिचुएशन तुम्हारे सामने सवाल बन कर खड़ी है वो लगभग वैसी ही है, जैसी सिचुएशन में भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था | तुम्हारे लिए गीता ज्ञान के महासागर से ये मोती चुन कर लाया हूँ | इसे ध्यान से पढ़ो, समझो और आगे का रास्ता तय करो |

गीता का श्लोक

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।

यह श्लोक गीता के दूसरे अध्याय से लिया गया है

इसका अर्थ है की हे अर्जुन यदि तुम युद्ध में वीर गति को प्राप्त होते हो, तो तुम्हे स्वर्ग मिलेगा और यदि विजय होते हो तो धरती का सुख पयोगे | इसलिए उठो हे कोनत्ये और निश्चय करके युद्ध करो | अर्जुन भी तुम्हारी तरह संदेह की स्थिति में थे की क्या करे, एक तरफ उनके और उनके परिवार के सम्मान का प्रश्न था तो दूसरी तरफ युद्ध भी अपने ही भाईओ, मित्रो और गुरयो से लड़ना था, जिसकी गवाही उनका मन नहीं दे रहा था |

तब भगवन श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया की धर्म युद्ध में एक पक्ष को चुनना ही पड़ेगा क्योकि एक समय के बाद अन्य के प्रति चुप रहना समझदारी नहीं कायरता कहलाता है | में तुम्हे यह श्लोक सुना कर किसी के प्रति हिंसा के लिए नहीं उकसा रहा हूँ बल्कि श्लोक के जरिए दिए गए सन्देश के भाव को समझाने की कोशिश कर रहा हूँ |

युद्ध हमेशा हथियारों से नहीं लाडे जाते है और अगर जरुरत पड़े भी तो हथियार की जगह अपनी बुद्धि और दूसरी क्षमताओं का इस्तेमाल किया जाता है | डर कर चुपचाप अन्याय सहने से कई ज्यादा अच्छा है न्याय के लिए लड़ते हुए हार जाना, तुम्हारे पास तुम्हारी शिक्षा ही वो हथियार है जिस से तुम अपने परिवार के प्रति हुए अन्याय का बदला ले सकते हो | इस से तुम अपना आत्मसम्मान भी बचा लोगे और अपनी माँ के प्रति जिम्मेदारी का पालन भी कर पयोगे |

इस लड़ाई में अगर तुम हार भी गए तब भी तुम्हे एक संतुष्टि रहेगी की तुमने अपना पूरा जोर लगाया था | में इसी के साथ अपनी बात को खत्म करता हूँ और भगवन श्री कृष्ण से प्रार्थना करता हूँ की तुम्हे सही निर्णय लेने की शक्ति दे |

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